दिमाग कहाँ है?
दिमाग कहाँ है? दिमाग कहाँ है? जहाँ होना चाहिए.... उसे छोड़कर— हर जगह है। न यथार्थ में है, न विचार में, न आत्मा के संकल्प में, न जीवन के विस्तार में। वो भटक रहा है — लोभ की गलियों में, झूठे सुख-सपनों की झिलमिल झाँझरों में, जहाँ न मौन है, न मंथन है। वो भाग रहा है उन संकरी गलियों से जहाँ ध्वजा लिए खड़े हैं प्रश्न ! वो ढुंढ रहा है—उत्तर दक्षिण में, भटक रहा है पूरब और पश्चिम में। दिमाग ! तू कब लौटेगा उस स्थान पर जहाँ तुझे होना है? जहाँ तुझसे सृजन की आशा है, जहाँ विचार की ज्वाला है, जहाँ आत्मा की मशाल। आज तू है — पर नहीं है, जैसे दीपक हो, जिसमें बाती नहीं है। लौट आ, ओ चंचल चित्त अपने भीतर, जहाँ से तू बदल सकता है संसार।